Page 202 - Reliance Foundation School Koparkhairane - School Magazine - Zenith 2021-22
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�बना �क म� चलना चाहती �ँ
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�ज़�गी गुलज़ार ह ै �दल क मसले, �ज�ी जज़्बात, पूर झगड़े और अधूरी बात,
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�ज � दगी जीने लायक है, अनकहे सपने, जागी सी रात, सलामत याद और �बगड़े हालात,
ज़रा अपने आँख� को खोलो। इनका हल करना है, मगर अभी-अभी मालूम �आ है �क कल मरना है।
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और आस-पास दखो, कोई बता द �क अब म� �ा क�ँ?
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खु�शयाँ ही खु�शयाँ �दख�गी।
जी लो एक �दन बे�फ�� म� या मौत से म� ज़रा ड�ँ?
सूरज हम� आशा दता है, जाने वह �कस घड़ी �मल जाएगी, �मलते ही मुझे �नगल जाएगी!
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रात हम� शां�त दती है।
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�सतार चमकते ह� और म� बाह� �कतनी फलाए रखूँ जब वह बाह� फलाए नज़र आएगी।
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चं�मा हम� आशीवार्द दता है। अब म� संभलना चाहती �ँ, �बना �क म� चलना चाहती �ँ।
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जो झड़ने को है बंद कली एक, वह कह रही है म� �खलना चाहती �ँ।
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दद �� दखना जब,
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खुशी दख सकते ह�। अ�ा! �फलहाल �ा ऐसा हो सकता है?
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डर �� दखना जब, मुझे पता लग जाए �क मेर पास आ�खर �कतना व� बचा है?
मु�ान दख सकते ह�| तो म� व� को ज़रा बाँट लूँगी,
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अपने चार� ओर दखो, महज मसरत, मुसीबत� क ढर से म� ढूँढ़ लूँगी, म� छाँट लूँगी।
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खु�शयाँ ही खु�शयाँ �दख�गी। मुलाकात� नह� तो बात� सही, आज �क जाते ह� ना, चलो जाते नह�।
�ज़ � दगी जीने लायक है, हाँ माना �क बहस म� शह और मात बची है,
ज़रा अपने आँख� को खोलो।
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पर मेर पास व� यह रात बची है।
Athira Ramakrishnan - 9 A म� �गन रही �ँ अब क� �कतनी साँसे आती ह�,
सोच रही �ँ �क �कतनी साँस� बाक� ह�। Avanee Shetye - 12 B
शायद �ादा नह� या सच क�ँ तो पता नह�।
�ज़ � दगी ग�णत नह� है, कहाँ शु� है, कहाँ ख़तम है?
कहाँ यह �ादा, कहाँ यह कम है? यह कह� पर �ल�खत नह� है।
ले�कन सुन, सुन खुदा, पाताल या ए हवा, मुझे �जससे भी �मलने आना है।
सुन तू बस मेरी मोह�त को, फ़ज़र् को, ज़रा स� दना|
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मेरी लाश पर चढ़ी फल� क� टूटी कलाइय� को ज़रा असर दना|
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कफ़न को मेर, अ�� क बोझ से दर�ा�, हे मत भर दना!
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जहाँ दफन होकर भी वह आज़ाद रहे, मेरी �ह को ऐसे क� दना|
Aryan Gaind - 12 A Vishwa Patel - 12 C Poorva Dixit - 11 C
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